Sunday, September 12, 2010

poem

इतिहास याद दिलाये


इतिहास याद दिलाये मेवाड़ी जयमल पत्ता की !
मेवाड़ी जयमल पत्ता की ! जागो ! जागो !!

जली रानियाँ जौहर व्रत ले , अंगारों से खेली थी अंगारों से खेली |
शान बेचकर कायर की भांति अश्रु धारा ले ली अब अश्रु धारा ले ली ||

भूल गया क्यों भोले तलवार राणा सांगा की !
तलवार राणा सांगा की ! जागो ! जागो !!

केशरिया बन जूझ गए हमको गौरव देने , हाँ हमको गौरव देने |
रखते क्यों नहीं प्राण ह्रदय में उनकी पीडा लेने रे उनकी पीडा लेने ||

आई प्रलय की बेला , है मांग गोरा बादल की !
है मांग गोरा बादल की जागो ! जागो !!

यहाँ घास की रोटी से वैभव ने हार मानी वैभव ने हार मानी |
इस धरती से गूंज रही जीवन की अमर कहानी - जीवन की अमर कहानी ||

वह थाती न गुमाना , महान हल्दी घाटी की !
महान हल्दी घाटी की जागो ! जागो !!

चढा नहीं पूजा में तो पैरों से कुचलेंगे -हाँ पैरों से कुचलेंगे |
कल जो कुचले गए आज फिर तुमसे बदला लेंगे - वे तुमसे बदला लेंगे ||

बिता युग है कोस रहा , धिक्कार ऐसे जीने को |
धिक्कार ऐसे जीने को जागो ! जागो



धरती माता किसने रखी लाज तेरे सम्मान की


धरती माता किसने रखी लाज तेरे सम्मान की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||
हाँ ! गाथाएँ बलिदान की ||

काबुल के तुफानो से जब जन मानस था थर्राया |
गजनी की आंधी से जाकर भीमदेव था टकराया ||
देख खानवा यहाँ चढी थी राजपूतों की त्योंरियां |
मतवालों की शमसिरों से निकली थी चिंगारियां ||
यहाँ कहानी गूंज रही सांगा के समर प्रयाण की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||

देखो इस चितौड़ दुर्ग का हर पत्थर गौरव वाला |
यहाँ चढाई कुल देवी पर शत-शत मुंडो की माला ||
महलों में जौहर धधका हर राजपूत परवाना था |
हर-हर महादेव के नारों से अवनी अम्बर गूंजा था ||
यहाँ गाथाएँ गूंज रही कण-कण में गौरव गान की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||

यही सीकरी यह पानीपत यही वही हल्दीघाटी |
वीर बांकुरों के शोणित से तृप्त हुई जिसकी माटी ||
हाल बता बुन्देल धरा तेरे उन वीर सपूतों का |
केशारियां कर निकल पड़े थे मान बचने माता का ||
भूल गए तो याद करो उस पृथ्वीराज महान की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||

आन बान हित कई बाँकुरे आजीवन थे यहाँ लड़े |
यवन सैन्य के झंझावत से पर्वत बनकर यहीं अडे ||
क्षिप्रा झेलम बोल जरा क्यों लाल हुआ तेरा पानी |
महाकाल से यहाँ जूझने दुर्गा की थी भृकुटी तनी ||
तेरी ही बेदी पर माता चिता जली अरमानों की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||

महाराणा सा सपूत पाकर धन्य हुई यह वसुंधरा |
जयमल पत्ता जैता कुम्पा झाला की यह परम्परा ||
जिन्दा है तो देख जरा जालौर और गढ़ उंटाला |
तारागढ़ और रणतभंवर में लगा शहीदों का मेला ||
आओ फिर से करें प्रतिष्ठा उस पावन प्रस्थान की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की ||

तडफ रहे है अब परवाने उसी शमां पर चढ़ने को |
आग उठी है रग-रग में फिर से बदला लेने को ||
भभक रहे है अब अंगारे प्रतिहिंसा के झोंको से |
भीख मांगता महाकाल निर्वासित राजकुमारों से ||
जगो यहाँ जगदेवों की लगी है बाजी जान की |
अलबेलों ने लिखी खड्ग से गाथाएँ बलिदान की


साथी संभल-संभल कर चलना

साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा |
है अँधियारा पर प्राची में झांक रहा सवेरा ||
बलिवेदी का अंगारा तू जीवन ज्योति जला दे | जीवन ...
लम्बी मंजिल बढ़ता जा होनी से कदम मिला ले , होनी से ...
गौरव से जीने मरने की बढ़ने की यह परम्परा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

साधन कम है फिर भी तुम पर आशाएं हमारी आशाएं , आशाएं ...
कर्म कठिन है कोमल काया अग्नि परीक्षा तुम्हारी , अग्नि परीक्षा ...
भुला पंथी भटक रहा तू बन जा रे ध्रुवतारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

यह जीवन न्योछावर करके क्या संतोष करेगा | क्या ..
जन्म जन्म का कर्जा कैसे एक जन्म में चुकेगा , एक जन्म ...
लहरों से हरो मत साथी दूर नहीं है किनारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

शमां जली है परवानों की आई है ऋतू मरने की , आई ...
मरने की या अरमानो की साथी पूरा करने की , साथी ...
करने की बेला में अच्छा लगता नहीं बसेरा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा ||

जौहर शाको की कीमत को आज चुका बलिदान से , आज ..
दोल उठेंगे दिग्गज साथी तेरे महाप्रयाण से , तेरे ............
अरमानो को बना न देना आंसुओं की धारा ||
साथी संभल-संभल कर चलना बीहड़ पंथ हमारा

~*~ जय चितोड़ ~*~


मांणक सूं मूंगी घणी जुडै़ न हीरां जोड़।
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़॥
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़।
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़॥
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़।
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़॥
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह।
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह॥
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़।
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़॥
गढला भारत देस रा जुडै़ न थारी जोड़।
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़॥


~*~ राजपूतों से अर्ज करूँ ~*~







तन-मन से है नारा मेरा , बोलो जय भवानी |

धिक्कार है उन राजपूतों को ,खोदी जिन्होंने अपनी जवानी ||


तन-मन से है नारा मेरा , बोलो जय भवानी |

कायर नही आज हम , दुनिया को यह आज बतानी ||


हम जन रक्षक रहे सदा से , क्षात्र धर्म का यह नारा है |

दुष्टों को हम मार भगाए , यही फर्ज हमारा है ||

कठिनाइयों के बीहड़ पथो में , हमने जीवन गुजारा है |

जन हित की रक्षा खातिर , दुश्मन को ललकारा है ||

त्याग बलिदान के पुंज हम है , सबको यह बात बतानी |

तन मन से है नारा मेरा , बोलो जय माँ भवानी



वो कौम न मिटने पायेगी


वो कौम न मिटने पायेगी
ठोकर लगने पर हर बार , उठती जाएगी |

युग युग से लगे है यहाँ पर देवों के दरबार
इस आँगन में राम थे खेले , खेले कृष्ण कुमार , झूम उठे अवतार ||

गंगा को धरती पर लाने भागीरथ थे आये
ध्रुव की निष्ठा देख के भगवन पैदल दौड़े आये , साधक आते जायें ||

विपदा में जो देवों की थी अभयदायिनी त्राता ही
चंडी जिनकी कुलदेवी हो बल तो उसमे आता ही , जय दुर्गा माता की ||

बैरी से बदला लेने जो हंस हंस शीश चढाते
शीश कटे धड से अलबेले बढ़-बढ़ दांव लगाते , मरकर जीते जाते |

जिनके कुल की कुल ललनाएं कुल का मान बढाती
अपने कुल की लाज बचाने लपटों में जल जाती , यश अपयश समझाती ||

मरण को मंगलमय अवसर गिन विधि को हाथ दिखाने
कर केसरिया पिए कसूँबा जाते धूम मचाने , मौत को पाठ पढ़ाने ||

कितने मंदिर कितने तीरथ देते यही गवाही
गठजोड़ों को काट चले थे बजती रही शहनाई , सतियाँ स्वर्ग सिधाई ||

कष्टों में जिस कौम के बन्दे जंगल -जंगल छानेंगे
भोग एश्वर्य आदि की मनुहारें ना मानेंगे , घर-घर दीप जलाएंगे ||


इतिहास की चोटों का


इतिहास की चोटों का एक दाग लिए फिरते है |
सीने के घराने में इक दर्द लिए फिरते है ||

हम भूल नही सकते महमूद तेरी गजनी |
अब तक भी आंखों में वह खून लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||

बाबर तेरे प्याले टूटे बता कितने ?
पर सरहदी का अफ़सोस लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है |||

झाला था इक माना कुरम था इक माना |
सोने के लगे जंग पै अचरज लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||

कर्जन तेरी दिल्ली में अनमी था इक राना |
सड़कों पे गिरे ताजों के रत्न चुगा फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दर्द लिए फिरते है |||

आपस में लड़े भाई गैरों ने हमें कुचला |
अब मिलकर लड़ने का अरमान लिए फिरते है ||
इतिहास की चोटों का इक दाग लिए फिरते है


भारत का मान बिन्दु


भारत का मान बिन्दु ,तिरंगा यह झंडा हमारा |
मर के अमर हो जाना, पर ये झंडा ना झुकाना ||
लाखों चढ़े थे शमा पर किंतु बुझने न दी ये ज्योति |
बलिदानों की ये कथाएँ बातों में ना तुम भुलाना ||
बूंदी की शान कुम्भा ने, मेवाड़ में लड़कर बचायी |
उसने नकली किला बचाया, तुम असली निशां ना झुकाना ||
हाथी से टक्कर दिला कर,छाती से किला तुड़वाया |
वीरों की अमर कहानी, चुल्लू पानी में ना तुम डूबना ||
पच्चीस वर्ष कष्टों के,प्रताप ने वन में सहे थे |
स्वतंत्रता के दीवानों का भी यही था तराना ||
ओ भारत के वीर सपूतो,ओ राष्ट्र के तुम सितारों |
जननी की लाज कभी तुम,अपने ना हाथों लुटाना ||
अपमान औ" ठोकर की अग्नि अश्रु बूंदों से ना तुम बुझाना |
बुझाना हो तुम्हे कभी तो, खून की नदी से बुझाना


हम भूल चुके है हाँ


हम भूल चुके है हाँ
हम भूल चुके है जिस पीड़ा को उसको फ़िर उकसानी है |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||
ऋषि मुनियों की जन्म भूमि यह भारत इसका नाम
देवों की अवतार भूमि यह सतियों का प्रिय धाम
दूर देश से भिक्षुक आते थे विद्या के काम
इतिहास बताते हाँ ---
इतिहास बताते भारत के वेदों की अमर कहानी |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||
यवनों का अधिकार हुवा रिपुओं की सब कुछ बन आई
धर्म त्याग जो नही किया तो खाले उनकी खिचवाई
वेद जलाये देवालय तोडे मस्जिद वहां पे बनवाई
भारत का जर्रा हाँ ---
भारत का जर्रा -जर्रा कहता वीरों की नादानी |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||
नादिरशाही हुक्म चला था कट गए थे सिर लाखों
देश धर्म की बलिवेदी पर शीश चढ़े थे लाखों
दिल्ली के तख्त पलटते हमने देखे थे इन आंखों
नही सुनी तो हाँ --
नही सुनी तो फ़िर सुनले हम वीरों की कुर्बानी |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||
मुगलों ने जब किया धर्म के नाम अनर्थ अपार
चमक उठी लाखों बिजली सी राजपूती तलवार
और सुनो हल्दी घाटी में बही रक्त की धार
हर -हर की ध्वनी में हाँ--
हर-हर की ध्वनी में सुनते है वह हुँकार पुरानी |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||

काबुल को फतह किया पर नही मस्जिद तुडवाई
अत्याचारी गौरी की भी गर्दन कहाँ कटाई
अरे विदेशी शत्रु को भी हमने माना भाई
बुझते दीप शिखा की हाँ---
बुझते दीप शिखा की हमको फ़िर से ज्योति जगानी
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||
याद हमें है दुर्गादास और वह सांगा रणधीर
याद हमें है सोमनाथ भी और बुंदेले वीर
याद हमें है हल्दी घाटी और हठी हमीर
याद हमें है हाँ--
याद हमें है रण में जूझी वह हाड़ी महारानी |
केसरिया झंडा सुना रहा है हमको अमर कहानी ||


राजपूत कौन

Ratan Singh Shekhawat, Aug 8, 2008
विविधायुध वान रखे नितही , रण से खुश राजपूत वही |
सब लोगन के भय टारन को ,अरी तस्कर दुष्टन मारन को |
रहना न चहे पर के वश में ,न गिरे त्रिय जीवन के रस में |
जिसके उर में शान्ति रही ,नय निति रखे राजपूत वही |
जननी भगनी सम अन्य त्रिया, गिन के न कभी व्यभिचार किया |
यदि आवत काल क्रपान गहि ,भयभीत न हो राजपूत वही |
धर्तिवान से धीर समीप रखे , निज चाकर खवासन को निरखे |
जिसने न रिपु ललकार सही , राजपूत रखे राजपूत वही |
पर कष्टं में पड़ के हरता ,निज देश सुरक्षण जो करता |
जिसने मुख से कही न नहीं ,प्रण पालत सो राजपूत वही


क्षत्रिय

Ratan Singh Shekhawat, Jul 12, 2008

क्षत्रियों की छतर छायाँ में ,क्षत्राणियों का भी नाम है |
और क्षत्रियों की छायाँ में ही ,पुरा हिंदुस्तान है |
क्षत्रिय ही सत्यवादी हे,और क्षत्रिय ही राम है |
दुनिया के लिए क्षत्रिय ही,हिंदुस्तान में घनश्याम है |
हर प्राणी के लिए रहा,शिवा का कैसा बलिदान है |
सुना नही क्या,हिंदुस्तान जानता,और सभी नौजवान है |
रजशिव ने राजपूतों पर किया अहसान है |
मांस पक्षी के लिए दिया ,क्षत्रियों ने भी दान है |
राणा ने जान देदी परहित,हर राजपूतों की शान है |
प्रथ्वी की जान लेली धोखे से,यह क्षत्रियों का अपमान है |
अंग्रेजों ने हमारे साथ,किया कितना घ्रणित कम है |
लक्ष्मी सी माता को लेली,और लेली हमारी जान है |
हिन्दुओं की लाज रखाने,हमने देदी अपनी जान है |
धन्य-धन्य सबने कही पर,आज कहीं न हमारा नाम है |
भडुओं की फिल्मों में देखो,राजपूतों का नाम कितना बदनाम है |
माँ है उनकी वैश्याऔर वो करते हीरो का कम है |
हिंदुस्तान की फिल्मों में,क्यो राजपूत ही बदनाम है |
ब्रह्मण वैश्य शुद्र तीनो ने,किया कही उपकार का काम है |
यदि किया कभी कुछ है तो,उसमे राजपूतों का पुरा योगदान है |
अमरसिंघ राठौर,महाराणा प्रताप,और राव शेखा यह क्षत्रियों के नाम है ||



झांसी की रानी लक्ष्मी बाई

Ratan Singh Shekhawat, Jun 29, 2008
सन अट्ठारह सौ पैंतीस में रानी झांसी ने था जन्म लिया
भारत की सोई जनता को उसने स्वतंत्रता पाठ पढ़ा दिया
दिखला दिया उसने फ़िरंगी को, है सिंहनी भारत की नारी
जिसे देख के वो तो दंग हुए, पर गद्दारों ने मार दिया



अकसर बालक बचपन में हैं खेलते खेल खिलौनों से
पर शुरु से ही इस कन्या ने ऐसा अपने को ढाल लिया
वो खेलती थी तलवारों से, तोड़ती नकली महलों को
और साथ में उसके नाना थे, जिनसे युद्ध का ज्ञान लिया

बचपन का नाम मनु उसका, सब कहते उसे छबीली थे
वो चिढ़ती, सब हँसते थे, यूँ यौवन देहरी को पार किया
झांसी के राजा गंगाधर से जब पाणिग्रहण संस्कार हुआ
मनु से बनी लक्ष्मी बाई, नया नाम सहर्ष स्वीकार किया

हुआ एक पुत्र, पर उसने जल्दी अपनी आँखें बन्द करीं
दामोदर राव को रानी ने पुत्र मान कर गोद लिया
थे सदा ही उसकी सेवा में सुन्दर, मुन्दर और काशी भी
जिनके हाथों की चोटों ने, शत्रु को पानी पिला दिया

कुछ समय बाद राजा ने भी इस जग से नाता तोड़ा
फिर रानी गद्दी पर बैठी, सत्ता को अपने हाथ लिया
सागर सिंह डाकू को उसने और मुन्दर ने यूँ जा पकड़ा
वो वीर थी जैसे दुर्गा हो, सब ने यह लोहा मान लिया

अब अंग्रेज़ों ने सोचा झांसी बिल्कुल ही लावारिस है
उसे घेर हथियाने का कपट, उन्होंने मन में धार लिया
बढ़ा रोज़ सोच यह आगे, झांसी बस अब अपने हाथ में है
पर धन्य वो रानी जिसने युद्ध चुनौती को स्वीकार किया

रानी कूदी रणभूमी में, हज़ारों अंग्रेज़ों के आगे
दो दो तलवारें हाथ में थीं, मुँह से घोड़े को थाम लिया
बिछ जाती दुशमन की लाशें जिधर से वो निकले
अंग्रेज़ भी बहुत हैरान हुए, किस आफ़त ने आ घेर लिया

मोती बाई की तोपों ने शत्रु के मुँह को बन्द किया
सुन्दर मुन्दर की चोटों ने रण छोड़ दास को जन्म दिया
शाबाश बढ़ो आगे को जब रानी ऐसा चिल्लाती थी
मुठ्ठी भर की फ़ौज ने मिल, अंग्रेज़ों को बेहाल किया

जब कुछ भी हाथ नहीं आया, रोज़ दिल ही दिल घबराया
इक अबला के हाथों से पिटकर सोचने पर मजबूर किया
छल, कपट और मक्करी से मैं करूँ इस को कब्ज़े में
पीर अली और दुल्हाज़ू ने, गद्दारी में रोज़ का साथ दिया

दुल्हाजू ने जब किले का फाटक अंग्रेज़ों को खोल दिया
फिर टिड्डी दल की भाँती उस शत्रु ने पूरा वार किया
रानी निकली किले से अपने पुत्र को पीठ पे लिए हुए
सीधी पहुँची वो कालपी कुछ सेना को अपने साथ लिया

फिर घमासान युद्ध हुआ वहाँ थोड़ी सी सेना बची रही
इक दुशमन ने गोली मारी, दूजे ने सिर पर वार किया
पर भारत की उस देवी ने दोनों को मार नरक भेजा
और साथ उसने भी अपने प्राणों का मोह त्याग दिया

रानी तो स्वर्ग सिधार गई पर काम अभी पूरा न हुआ
स्वतंत्रता संग्राम के दीपक को अगली पीढ़ी को सौंप दिया
तुम तोड़ फेंकना मिलकर सब ग़ुलामी की इन ज़ंज़ीरों को
और भारत को स्वतंत्र करने का सपना सभी पर छोड़ दिया


क्षत्रिय वंदना

Ratan Singh Shekhawat, Jun 27, 2008
क्षत्रिय कुल में जन्म दिया तो ,क्षत्रिय के हित में जीवन बिताऊं |
धर्म के कंटकाकीर्ण मग पर ,धीरज से में कदम बढ़ाऊँ ||
भरे हलाहल है ये विष के प्याले ,दिल में है दुवेष के हाय फफोले |
जातीय गगन में चंद्र सा बन प्रभु, शीतल चांदनी में छिटकाऊँ ||
विचारानुकुल आचार बनाकर ,वास्तविक भक्ति से तुम्हे रिझाऊँ || १ ||
उच्च सिंहासन न मुझे बताना,स्वर्ग का चाहे न द्वार दिखाना |
जाति की फुलवारी में पुष्प बनाना , ताकि में सोरभ से जग को रिझाऊँ ||
डाली से तोडा भी जाऊँ तो भगवन, तेरा ही नेवेधे बन चरणों में आऊं || २ ||
साधन की कमी है कार्य कठिन है , मार्ग में माया के अनगिनत विध्न है |
बाधाओं दुविधावों के बंधन को तोड़के , सेवा के मार्ग में जीवन बिछाऊँ ||
पतों से फूलों से नदियों की कल कल से ,गुंजित हो जीवन का संदेश सुनाऊँ || ३



चार बांस चोवीस गज, अंगुळ अष्ट प्रमाण।

Ratan Singh Shekhawat, Jun 26, 2008






चार बांस चोवीस गज, अंगुळ अष्ट प्रमाण।



ईते पर सुळतान है, मत चूकैं चौहाण॥



ईहीं बाणं चौहाण, रा रावण उथप्यो।



ईहीं बाणं चौहाण, करण सिर अरजण काप्यौ॥



ईहीं बाणं चौहाण, संकर त्रिपरासुर संध्यो।



सो बाणं आज तो कर चढयो, चंद विरद सच्चों चवें।



चौवान राण संभर धणी, मत चूकैं मोटे तवे॥



ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो गोकुळ में कानह।



ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो हथह भीम कर॥



ईसो राज पृथ्वीराज, जिसो राम रावण संतावणईसो राज पृथ्वीराज, जिसो अहंकारी रावण॥



बरसी तीस सह आगरों, लछन बतीस संजुत तन।



ईम जपे चंद वरदाय वर, पृथ्वीराज उति हार ईन॥






राणा प्रताप के प्रन की जेय.....

Ratan Singh Shekhawat, Jun 17, 2008
दूग दूग दूग रन के डंके, मारू के साथ भ्याद बाजे!
ताप ताप ताप घोड़े कूद पड़े, काट काट मतंग के राद बजे!

कल कल कर उठी मुग़ल सेना, किलकर उठी, लालकर उठी!
ऐसी मायाण विवार से निकली तुरंत, आही नागिन सी फुल्कर उठी!

फ़र फ़र फ़र फ़र फ़र फेहरा उठ, अकबर का अभिमान निशान!
बढ़ चला पटक लेकर अपार, मद मस्त द्वीरध पेर मस्तमान!!

कॉलहाल पेर कॉलहाल सुन, शस्त्रों की सुन झंकार प्रबल!
मेवाड़ केसरी गर्ज उठा, सुन कर आही की लालकार प्रबल!!

हैर एक्लिंग को माता नवा, लोहा लेने चल पड़ा वीर!
चेतक का चंचल वेग देख, तट महा महा लजित समीर!!

लड़ लड़ कर अखिल महिताम को, शॉड़िंत से भर देने वाली!
तलवार वीर की तड़प उठी, आही कंठ क़ातर देने वाली!!

राणा को भर आनंद, सूरज समान छम चमा उठा!
बन माहाकाल का माहाकाल, भीषन भला दम दमा उठा!!

भारी प्रताप की वज़ी तुरत, बज चले दमामे धमार धमार!
धूम धूम रन के बाजे बजे, बज चले नगरे धमार धमार!!

अपने पेन हथियार लिए पेनी पेनी तलवार लिए !
आए ख़ार, कुंत, क़तर लिए जन्नी सेवा का भर लिए !!

कुछ घोड़े पेर कुछ हाथी पेर, कुछ योधा पैदल ही आए!
कुछ ले बर्चे , कुछ ले भाले, कुछ शार से तर्कस भर ले आए!!

रन यात्रा करते ही बोले, राणा की जेय राणा की जेय !
मेवाड़ सिपाही बोल उठे, शत बार महा-राणा की जेय!!

हल्दी-घाटी की रन की जेय, राणा प्रताप के प्रन की जेय!
जेय जेय भारत माता की , देश कन कन की जेय!!


धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।

Ratan Singh Shekhawat, Jun 10, 2008



धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।


धन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने॥


फीका पड़ा था तेज़ सुरज का, जब माथा उन्चा तु करता था।


फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख खोली प्रताप ने॥


जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी।


फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी॥


था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तु सवारी करता था।


थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था॥


हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे।


देख के उसकी शक्ती को, हर दुशमन उससे डरा करे॥


करता हुं नमन मै प्रताप को,जो वीरता का प्रतीक है।


तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त,तु अखण्डता का प्रतीक है॥


हे प्रताप मुझे तु शक्ती दे,दुश्मन को मै भी हराऊंगा।


मै हु तेरा एक अनुयायी,दुश्मन को मार भगाऊंगा॥


है धर्म हर हिन्दुस्तानी का,कि तेरे जैसा बनने का।


चलना है अब तो उसी मार्ग,जो मार्ग दिखाया प्रताप ने॥

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