Tuesday, September 7, 2010

maharana partap ko samrpit

अरे घास री रोटी ही , जद बन बिलावडो ले भाग्यो


नान्हो सो अमरियो चीख पड्यो,राणा रो सोयो दुख जाग्यो



अरे घास री रोटी ही…………





हुँ लड्यो घणो , हुँ सहयो घणो, मेवाडी मान बचावण न



हुँ पाछ नहि राखी रण म , बैरयां रो खून बहावण म



जद याद करुं हल्दीघाटी , नैणां म रक्त उतर आवै



सुख: दुख रो साथी चेतकडो , सुती सी हूंक जगा जावै



अरे घास री रोटी ही…………





पण आज बिलखतो देखुं हूं , जद राज कंवर न रोटी न



हुँ क्षात्र धरम न भूलूँ हूँ , भूलूँ हिन्दवाणी चोटी न



महलां म छप्पन भोग झका , मनवार बीना करता कोनी



सोना री थालयां ,नीलम रा बजोट बीना धरता कोनी



अरे घास री रोटी ही…………





ऐ हा झका धरता पगल्या , फूलां री कव्ठी सेजां पर



बै आज रूठ भुख़ा तिसयां , हिन्दवाण सुरज रा टाबर















आ सोच हुई दो टूट तडक , राणा री भीम बजर छाती



आँख़्यां म आंसु भर बोल्या , म लीख़स्युं अकबर न पाती



पण लिख़ूं कियां जद देखूँ हूं , आ रावल कुतो हियो लियां



चितौड ख़ड्यो ह मगरानँ म ,विकराल भूत सी लियां छियां



अरे घास री रोटी ही…………





म झुकूं कियां है आण मन , कुठ्ठ रा केसरिया बाना री



म भुजूं

छड़ते चेतक प्र तलवार उठाए , रखते थे भूतल पानी को !

राणा प्रताप सिर काट काट, करते थे सफल जवानी को !!



निर्बल बकारों से बाघ लड़े, भीड़ गाये सिंघ मर्ग च्छानो से !

घोड़े गिर पड़े, गिरे हाथी , पैदल बीच् ग्ये बिचानो से !!



हेय ऋंड गीरे, गुज मूँद गिरे, काट काट अवनी प्र शुंद गिरे !

लड़ते लड़ते अरी झुंड गिरे, भूू प्र हाय बिकल बिटूंद गिरे !!



The war of prestige (हल्दी - घाटी)



दूग दूग दूग रन के डंके, मारू के साथ भ्याद बाजे!

ताप ताप ताप घोड़े कूद पड़े, काट काट मतंग के राद बजे!



कल कल कर उठी मुग़ल सेना, किलकर उठी, लालकर उठी!

ऐसी मायाण विवार से निकली तुरंत, आही नागिन सी फुल्कर उठी!



फ़र फ़र फ़र फ़र फ़र फेहरा उठ, अकबर का अभिमान निशान!

बढ़ चला पटक लेकर अपार, मद मस्त द्वीरध पेर मस्तमान!!



कॉलहाल पेर कॉलहाल सुन, शस्त्रों की सुन झंकार प्रबल!

मेवाड़ केसरी गर्ज उठा, सुन कर आही की लालकार प्रबल!!



हैर एक्लिंग को माता नवा, लोहा लेने चल पड़ा वीर!

चेतक का चंचल वेग देख, तट महा महा लजित समीर!!



लड़ लड़ कर अखिल महिताम को, शॉड़िंत से भर देने वाली!

तलवार वीर की तड़प उठी, आही कंठ क़ातर देने वाली!!



राणा को भर आनंद, सूरज समान छम चमा उठा!

बन माहाकाल का माहाकाल, भीषन भला दम दमा उ

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