हठीलो राजस्थान-13
Ratan Singh Shekhawat, Sep 21, 2010
रगत बहायौ रोसतां,
रंगी धर, फण सेस |
दिल्ली-जड़ ढिल्ली करी,
मारू मुरधर देस ||७६||
मरुधर देश राजस्थान ने जब क्रोध किया ,तो रक्त बह उठा जिसने शेषनाग के फण पर टिकी धरती रंग गई और दिल्ली की जड़े ढीली हो गई | अर्थात दिल्ली के शासकों को भी विचलित कर दिया |
सूरां सतियाँ सेहरो,
सेखा धरती सान |
तो माटी में निपजै,
बढ़ बढ़ नर बलवान ||७७||
यह शान वाली शेखावाटी की धरा वीरों सतियों का सेहरा है | इस धरती पर एक से एक महान वीर पैदा होते है |
धरती आ ढुंढ़ाड़ री,
दिल्ली हन्दी ढाल |
भुजबल इण रै आसरै,
नित नित देस निहाल ||७८||
ढुंढ़ाड़ (जयपुर,आमेर राज्य) की यह धरती सदा दिल्ली की रक्षक रही है | इसके बल के भरोसे ही देश हमेशा कृतार्थ व सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रहा है |
धरती आ जैसाण री,
बरती कदै न और |
पाणी जठे पातळ में,
नारी नैणा कौर ||७९||
जैसलमेर की वीर भोग्या वसुंधरा को कभी भी कोई आक्रान्ता अधिकृत नहीं कर सका | इस क्षेत्र की विशेषता है कि यहाँ पर पानी या तो पाताल में है या नारी के नेत्रों में |
सूर,धनी, चंगों मनां,
व्हालो, नेह विसेस |
देस विदेसां जाणसी,
जांगल देस हमेस ||८०||
जहाँ शूरवीर,धनी व निर्दोष मन वाले तथा विशेष स्नेही लोग निवास करते है, ऐसा बीकानेर का क्षेत्र (जांगल देश) देश व विदेशों में सर्वत्र विख्यात है |
करता बांटी कायमी,
राजपूती एक सत्थ |
हाजर एक मेवाड़ जद,
बिजां लगी न हत्थ ||८१||
विधाता ने दृढ़ता और वीरता एक साथ ही बांटी थी | उस समय केवल मेवाड़ ही वहां उपस्थित था | इसलिए अन्य किसी को वीरता व दृढ़ता नहीं मिल सकी ||
मेरी शेखावाटी
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया |
ताऊ पत्रिका
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हठीलो राजस्थान-12
Ratan Singh Shekhawat, Sep 20, 2010
डिगीयौ नह गढ़ डीग रो,
तोपां ताव पड़ंत |
कोरां खांडी नीं हुई,
गोरां डिंग गलन्त ||७०||
वीर सूरजमल का शौर्य स्मारक डीग का दुर्ग तोपों की मार से भी डिगा नहीं | यद्धपि गोरों (अंग्रेजों) की डींग(बड़ी-बड़ी बातें) नष्ट हो गयी परन्तु इस दुर्ग की कोर भी खंडित नहीं हुई |
वीर धरा रजथान री,
सूरां में सिर मोड़ |
हल्दी घाटी घाटियाँ,
गढ़ां सु गढ़ चितौड़ ||
राजस्थान की यह वीर भूमि,वीर-भूमियों में शिरोमणि है | घाटियों में हल्दी-घाटी व दुर्गों में चित्तौड़ दुर्ग श्रेष्ठ है |
हल्दी घाटी साख दे,
चेटक झाला पाण |
इण घाटी दिसै सदा,
माटी माटी राण ||72||
हल्दी घाटी आज भी चेतक व झाला मान सिंह की कर्तव्य निष्ठा की साक्षी दे रही है | इस घाटी के कण-कण में आज भी महाराणा प्रताप के दर्शन होते है |
माथा बात भारवियो,
खनवा खेत सधीर |
धार तराजू तोलियो,
भारत भाग अखीर||७३||
खानवा के रण-क्षेत्र में तलवार की तराजू पर मस्तक के बाटों से भारत का भाग्य अंत में राणा सांगा के हाथों ही तोला गया |
बोल्यो सूरी बैण यूँ,
गिरी घाट घमसाण |
मूठी खातर बाजरी,
खो देतो हिंदवाण ||७४||
शेरशाह सूरी सुमेरगिरी गांव की घाटी में युद्ध करने के बाद बोला -' मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान का राज्य खो देता |' इस युद्ध में जोधपुर के सेनापति राव जैता व कुम्पा ने दस हजार राजपूत सैनिकों के साथ सूरी की अस्सी हजार सैनिको वाली सेना के चालीस हजार सैनिक काट डाले थे और सूरी पराजित होते होते बचा था इस पर उसके मुंह से उपरोक्त वचन अनायास ही निकल पड़े थे |
सुर सारा अद्रस रमै,
नर-मुनि सुरपुर काज |
पाप नसाणो पुहुमिरा,
गुरुवर पुस्कर राज ||७५||
भूमि पर सभी के पापों को नष्ट करने वाला तीर्थराज पुष्कर सब तीर्थो में श्रेष्ठ है | यहाँ श्रेष्ठ नर,मुनि व अदृश्य रूप से देवता स्वर्ग का हित करने के लिए निवास करते है | अर्थात यहाँ स्नान करने वालों को स्वर्ग प्रदान कर ये देवता और मुनि स्वर्ग का ही हित करते है |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया |
मेरी शेखावाटी
ताऊ पत्रिका
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हठीलो राजस्थान-11
Ratan Singh Shekhawat, Sep 17, 2010
तीनों पोल्यां देवल्यां,
देवल तीन खड़ीह |
धव पहली सुत दूसरी,
तीजी आप लड़ीह ||६४||
दुर्ग के तीनों द्वारों की देहलियों पर तीन देवलियां है | पहली पति पर,दूसरी पुत्र पर तथा तीसरी स्वयं पर है जहाँ पर वह लड़ी थी |
चारों जुग तिहूँ लोक में,
ठावी एकज ठौड़ |
सूर-सती सुमरै सदा,
तीर्थ गढ़ चितौड़ ||६५||
चारों युगों व तीनों लोकों में एक ही तीर्थ स्थान चितौड़गढ़ धन्य है,जिसका सभी वीर व सतियाँ सदा स्मरण करती है |
बल बंकौ रण बंकड़ो,
सूर-सती सिर मोड़ |
प्रण बंकौ प्रबली धरा,
चंगों गढ़ चितौड़ ||६६||
बल में बांका,रण-बांकुरा,शूरों व सतियों का सिर-मौर,वचनों की टेक रखने वाला तथा आंटीला चितौड़ दुर्ग ही सर्व-श्रेष्ठ है |
रण रमियो,रण रोति सूं,
रणमल रणथम्भोर |
राख्यो हठ हमीर रौ,
कट-कट खागां कोर ||६७||
कवि रणथम्भोर की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि युद्ध की परम्परा को निभाने वाला वीरों का रण-स्थल यह रणथम्भोर दुर्ग अविचल है,जिसने स्वयं असिधारा से खंड खंड होकर भी वीर हमीर के हठ को अखंड रखा |
सूरो गढ़ जालौर रो,
सूरां रौ सिंणगार |
अजै सुनीजै उण धरा,
वीरम दे हूंकार ||६८||
जालौर का यह वीर दुर्ग वीरों का श्रृंगार है | उसके कण-कण में आज भी विरमदेव की हूंकार सुनाई देती है |
पच्छिम दिस पहरी सदा,
गढ़ जैसाणों सेस |
अजै रुखालो सूरतां,
अजै रुखालो देस ||६९||
जैसलमेर का यह दुर्ग सदा से ही पश्चिम दिशा का प्रहरी रहा है | यह दुर्ग आज भी वीरता की रखवाली करता हुआ देश की रक्षा कर रहा है |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
पहेली से परेशान राजा और बुद्धिमान ताऊ |
तीन लघु कविताएं|
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हठीलो राजस्थान-10
Ratan Singh Shekhawat, Sep 16, 2010
देणी धरती दान में,
देणी नह खग जोर |
लेणों भाला नोक सूं,
वा धर रहणी ठौर ||५८||
धरती दान में तो देनी चाहिए किन्तु तलवार के जोर इसे किसी को नहीं देनी चाहिए | भालों की नोक के बल पर जो इस धरती को लेता है,यह उसी के पास रहती है | अर्थात पृथ्वी वीर भोग्या है |
डूंगर चोटयां गढ़ घणा,
टणकां राखी टेक |
रखवाला रजथान रा,
अनमी सीस अनेक ||५९||
राजस्थान में गिरी-शिखरों पर अनेक गढ़ बने हुए है,जिनकी शूरवीरों ने रक्षा की | राजस्थान में कभी नहीं झुकने वाले ऐसे अनेक रक्षकों के मस्तक आज भी गौरव से उन गढ़ों से भी अधिक ऊँचे दिखाई देते है |
जस चमकाव जगत में ,
आप दुरग इतिहास |
जडिया इण विध भाकरां,
तारां जिम आकाश ||६०||
अपनी शौर्य गाथाओं से जो जगत में अपने सुयश का प्रकाश फैलाते है,ऐसे अनेक दुर्ग,पहाड़ों पर ऐसे शोभायमान हो रहे है जैसे आकाश में तारे |
वो गढ़ नीचो किम झुकै,
ऊँचो जस-गिर वास |
हर झाटे जौहर जठै,
हर भाटे इतिहास ||६१||
वह गढ़ भला नीचे कैसे झुक सकता है,जिसका निवास सुयश के ऊँचे शिखर पर हो ,जिसके हर द्वार पर जौहर की ज्वाला जगी हो तथा जिसके हर पत्थर पर इतिहास अंकित हो |
ऊपर गढ़ में हूँ गयो,
नम नम नायो माथ |
जठै बळी इक भामणी,
दो टाबरियां साथ ||६२||
मैं पर्वत पर स्थित उस गढ़ में गया तथा श्रद्धा से झुक कर वहां बारम्बार नमन किया ,जहाँ एक वीरांगना ने अपने दो अबोध बालकों के साथ अग्नि स्नान (जौहर) किया था |
वो गढ़ दिसै बांकड़ो ,
पोल्याँ जिण रे सात |
सातूं पोल्याँ देवल्यां,
सातां मंडिया हाथ ||६३||
वह गढ़ निश्चय ही बांका है,जिसके सात दरवाजे है और सातों ही दरवाजों पर देवलियां तथा हथेलियों के चिन्ह अंकित है | अर्थात जहाँ सातों ही दरवाजों पर वीर जुझार हुए है व सातों दरवाजों पर वीरांगनाए सतियाँ हुई है |
राजा मानसिंह आमेर |
तीन लघु कविताएं
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हठीलो राजस्थान-9
Ratan Singh Shekhawat, Sep 12, 2010
धुण हिड़दै इक सांभली,
भणतां खुद भगवान |
राग सदा सत वाहिनी,
संदेसो सत -ग्यान ||५२||
हे सखी ! भगवान का भजन करते करते मुझे हृदय में स्वयं भगवान की एक धुन सुनाई देती है | उस ध्वनि से मेरे हृदय में,सत्य के कम्पन से उत्पन्न हुई एक अनुपम राग,अनुभव होती है व सत्य-ज्ञान का संदेश कानों में सुनाई देता है |
माई मां, निज मात रो,
जाणे भेद जहाण |
निज धरमा मरणो भलो ,
पर धरमां नित हांण ||५३||
सौतेली मां व अपनी जन्म दात्री मां में कितना अंतर होता है -इसे सारा संसार जानता है | ठीक एसा ही भेद स्व-धर्म और पर-धर्म में होता है | स्वधर्म के लिए मरना सदा ही श्रेयष्कर है, जबकि परधर्म सदा हानिकारक होता है |
सींचै रुधिर सजागणो,
सिर सूंपै मम सैण |
उण घर रही ज आज लग,
बोले आ धर बैण ||५४||
यह धरती कहती है कि जो जागृत रहकर मुझे रक्त से सींचते है और मेरे इंगित मात्र पर अपना सिर समर्पित कर देते है, उसी घर में मैं आज तक रही हूँ | अर्थात अपना सर्वस्व बलिदान करने को तत्पर रहने वाले वीरों के ही अधिकार में मैं रही हूँ |
रगतां न्हाती नित रहै,
साजै नित सिंणगार |
परणी सूं धरणी प्रबल,
नखराली आ नार ||५५||
यह धरती प्रतिदिन रक्त से स्नान करती है और प्रतिदिन नविन श्रंगार करती है | इस प्रकार यह धरती पत्नी से भी ज्यादा श्रंगार प्रिय व प्रबल है ||
इस माथै सती अमर,
सतियाँ में सिरताज |
बल परणी,धरणी बली,
एकला दिसै आज ||५६||
इस पृथ्वी पर सती अमर है | ऐसी सतियाँ में बल के साथ विवाह होने के कारण बलवती हुई यह धरती आज महान दिखती है |
उबड़ खाबड़ अटपटी,
उपजै थोड़ी आय |
मोल मुलायाँ नह मिलै,
सिर साटे मिल जाय ||५७||
उबड़-खाबड़,बेढंगी व कम उपजाऊ होते हुए भी यह धरती किसी मोल पर नहीं मिल सकती | परन्तु जो इसके अपने मस्तक का दान करते है उसको यह धरती अवश्य मिल जाती है | अर्थात राजस्थान की यह उबड़-खाबड़ अनुपजाऊ भूमि किसी मुद्रा से नहीं मिलती इसे पाने के लिए तो सिर कटवाने पड़ते है |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत,हुडील
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया |
ताऊ पहेली - 91 (Bhoram Dev Temple-Chattisgarh)
बहुत काम की है ये रेगिस्तानी छिपकली -गोह
एसिडिटी और मोटापे से कैसे बचे ?
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हठीलो राजस्थान-8
Ratan Singh Shekhawat,
नैणा नाथ न निरखियौ,
परणी खांडै साथ |
बलती झाला वा रमी ,
रगड़े हन्दी रात ||४६||
उस वीरांगना ने अपनी आँखों से पति के कभी दर्शन नहीं किये ,क्योंकि विवाह के अवसर पर उसका पति युद्ध-क्षेत्र में चला गया था ,अत: पति की तलवार के साथ ही उसका विवाह हुआ था | युद्ध क्षेत्र में पति की वीर-गति का समाचार आने पर वही पत्नी,जिसके हाथों से हल्दी का रंग भी नहीं मिटा था ,अपने आप को अग्नि के समर्पित कर सती हो जाती है |
संग बल्तां लाड़ी बणे,
मांगल राग नकीब |
रण ठाडो लाडो सजै,
इण घर रीत अजीब ||४७||
चिता पर अपने वीर पति के शव के साथ सहगमन करते समय यहाँ की महिलाऐं दुल्हन का वेश धारण करती है व वीर युद्ध के लिए प्रस्थान हेतु दुल्हे का सा केसरिया वेश धारण करते है | इन दोनों अवसरों पर ही मंगल राग वाध्यों द्वारा बजाई जाती है | इस वीर भूमि का यही रिवाज है |
घर व्हाली धण सूं घणी,
धर चूमै पड़ खेत |
रगतां रंगे ओढ़णी,
रगतां बाँदै रेत ||४८||
वीरों की धरती अपनी पत्नी से भी अधिक प्यारी है | इसीलिए धराशायी होने पर वे धरती को ही चूमते है तथा अपने रक्त से उसकी मिटटी रूपी चुन्दडी को रंगते है व अपने रक्त रंजित शरीर के साथ मिट्टी को लपेट कर स्वर्ग में साथ ले जाते है |
भड पडियो रण-खेत में,
संचै पूँजी साथ |
राज सांधे निज रगत सूं,
पिण्ड- दान निज हाथ ||49||
वीर-योद्धा रण-क्षेत्र में धराशायी हो गया,किन्तु सत्य की संचित सम्पत्ति फिर भी उसके साथ है | इसीलिए किसी दुसरे को उसका पिंडदान कराने की आवश्यकता नहीं है | वह स्वयम ही अपने रक्त से भीगी हुई मिट्टी के पिण्ड बनाकर अपने ही हाथ से अपने लिए पिंडदान करता है |
(इतिहास में खंडेला के राजा केसरीसिंह द्वारा रण-भूमि में अपने रक्त से अपना पिंडदान करने का उदहारण मौजूद है राजा केसरीसिंह पर ज्यादा जानकारी जल्द ज्ञान दर्पण पर प्रस्तुत की जाएगी)
पग-पग तीरथ इण धरा ,
पग- पग संत समाध |
पग- पग देवल देहरा ,
रमता जोगी साध ||५०||
इस धरती पर स्थान-स्थान पर तीर्थ है,स्थान -स्थान पर संत-महात्माओं की समाधियाँ है ,स्थान-स्थान पर देवल और देवालय है तथा स्थान-स्थान पर यहाँ योगी और साधू महात्मा विचरण करते है |
कर भालो,करवाल कटि,
अदृस हय असवार |
इण धरती रै उपरै,
लड़ता नित जुंझार ||५१||
हाथ में भाला और कमर में तलवार बाँध कर तथा अश्व पर सवार होकर अदृश्य जुंझार इस धरती पर हमेशा लड़ते थे (युद्धरत रहते थे)
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
शर्त जीतने हेतु उस वीर ने अपना सिर काटकर दुर्ग में फेंक दिया
ब्लोगिंग के दुश्मन चार इनसे बचना मुश्किल यार
ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली - 91
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हठीलो राजस्थान -7
Ratan Singh Shekhawat, Sep 11, 2010
बौले सुरपत बैण यूँ ,
सुरपुर राखण सान |
सुरग बसाऊं आज सूं,
नान्हों सो रजथान ||४०||
सुर-पति इंद्र कहता है कि स्वर्ग की शान रखने के लिए आज से मैं यहाँ भी एक छोटा सा राजस्थान बसाऊंगा | (ताकि लोग स्वर्ग को भी वीर भूमि समझे )
दो दो मेला भरे,
पूजै दो दो ठौड़ |
सिर कटियो जिण ठौड़ पर ,
धड़ जुंझी जिण ठौड़ || ४१||
एक ही वीर की स्मृति में दो दो स्थानों पर मेले लगते है और दो स्थानों पर उनकी पूजा होती है | एक स्थान वह है ,जहाँ युद्ध में उस वीर का सिर कट कर भूमि पर गिरा तथा दूसरा स्थान वह है जहाँ सिर कटने के उपरांत उसकी धड़ (शरीर) लडती (जूझती)हुई धराशायी हुई | क्योंकि सिर कटने के बाद भी योद्धा का धड़ युद्ध करता हुआ कई मीलों तक आगे निकल जाता था |
मरत घुरावै ढोलडा,
गावै मंगल गीत |
अमलां महफल ओपणी,
इण धरती आ रीत ||४२||
यहाँ मरण को भी पर्व मानते हुए मृत्यु पर ढोल बजवाये जाते है एवं मंगल गीत गवाए जाते है | अमल-पान की महफ़िल होती है | इस वीर-भूमि की यही रीत है |
उण घर सुणिया गीतडा,
इण घर ढोल नगार |
उण घर परण त्युहार हो ,
इण घर मरण त्युंहार ||४३||
विवाह के उपलक्ष्य में कन्या पक्ष के यहाँ मंगल गीत गाए जा रहे थे ,उसी समय युद्ध की सूचना मिलने पर वर के घर पर युद्ध के ढोल नगारे आदि रण-वाध्य बजने लगे | उधर परण-त्योंहार मनाया जा रहा था तो इधर मरण-त्योंहार की तैयारियां हो रही थी |
देवलियां पग पग खड़ी,
पग पग देव निवास |
भूलोड़ा इतिहास रौ,
गावै नित इतिहास ||४४||
राजस्थान में स्थान स्थान पर देवलियों के रूप में प्रस्तर के वीर स्मारक खड़े है और स्थान स्थान पर ही वीरों के देवालय है जो हमारे विस्मृत इतिहास का नित्य इतिहास गान करते है अर्थात विस्मृत इतिहास की स्मृति कराते है |
कुवांरी काठां चढ़े,
जुंझे सिर बिण जंग |
रीठ-पीठ देवै नहीं ,
इण धरती धण रंग ||४५||
किसी वीर को पति बनाने का संकल्प धारण कर लेने के बाद यदि उस वीर की युद्ध में मृत्यु हो जाय तो संकल्प करने वाली वह कुंवारी ही सती हो जाया करती थी तथा यहाँ के शूरवीर सिर कटने के बाद उपरांत भी युद्ध करते थे व युद्ध भूमि में पीठ नहीं दिखाते | ऐसी यह वीर-भूमि बारम्बार धन्य है |
आयुवानसिंह शेखावत,हुडील
जोधपुर राजघराने में गूंजेगी शहनाइयाँ |
ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली - 91
बाते फ्री में बात करवाने वाले जुगाड की
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हठीलो राजस्थान-6
Ratan Singh Shekhawat, Sep 2, 2010
छीन ठंडी छीन गरम है,
तुनक मिजाजी नेस |
भोली सूर सभाव री,
धरती दोस न लेस ||३४ ||
राजस्थान की भूमि क्षणभर में ठंडी व क्षण भर में गर्म हो जाती है | इसमें इस धरती का तनिक भी दोष नहीं है,और न ही यह स्थिर स्वभाव की द्योतक है बल्कि यह शूरवीर के भोले स्वभाव का प्रतीक गुण है |
निपजै नारी पद्मणी
घर घर वीरां खाण |
सारा देसां सूं सिरे ,
रेतीलो रजथान ||३५||
यहाँ घर-घर में पद्मिनी जैसी नारियां पैदा होती है व यहाँ का हर का प्रत्येक घर वीरों को उत्पन्न करने वाली खान है | इसीलिए यह राजस्थान प्रदेश सब प्रदेशों से श्रेष्ठ है |
धोला मन, धोली खगां,
धोला धोरां वान |
केव्या मुख कालो करै,
रोसंतां रजथान ||३६||
यहाँ उज्जवल मन और उज्जवल खड्ग धारण करने वाले वीर निवास करते है | यहाँ श्वेत बालू रेत के टीले भी उजले है | परन्तु राजस्थानी वीर क्रुद्ध होने पर शत्रुओं का मुंह काला कर देते है |
सूखा गिरवर, बन पवन,
सूखी सह नदियांह |
झरना झारै निस दिवस,
अरि धण री अखियांह ||३७||
इस प्रदेश के पर्वत,वन,पवन तथा समस्त नदियाँ सूखी है | किन्तु शत्रुओं की स्त्रियों की आँखों से दिन रात झरने बहते है अर्थात आंसू टपकते रहते है |
दिल कठोर कोमल बदन,
अदभुत रीत निभाय |
अरि रेलों सोखे उदर,
रेलों रुधिर बहाय ||३८||
राजस्थान की भूमि व यहाँ के वीरों का दिल कठोर व शरीर कोमल होता है | फिर भी यह अदभुत है कि अपने खून की नदी बहाकर यह दुश्मन की सेना के प्रवाह को अपने पेट में समाहित कर लेते है अर्थात नष्ट कर देते है |
सीतल गरम समीर इत,
नीचो,ऊँचो नीर |
रंगीला रजथान सूं ,
किम रुड़ो कस्मीर ? ||३९||
राजस्थान वैविध्य युक्त है | यहाँ कभी ठंडी तो कभी गर्म हवा चलती है तथा पानी भी कहीं उथला तो कहीं गहरा है | ऐसे में रंगीले (हर ऋतू में सुहावने)राजस्थान से कश्मीर (जहाँ सिर्फ शीतल पवन और भूमि की उपरी सतह पर पानी है)किस प्रकार श्रेष्ट कहा जा सकता है ?
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
एक वीर जिसने दो बार वीर-गति प्राप्त की |
विश्व के मानचित्र पर पहचान बनाने वाला गाँव - बख्तावरपुरा
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हठीलो राजस्थान-5
Ratan Singh Shekhawat, Aug 30, 2010
मात सुणावै बालगां,
खौफ़नाक रण-गाथ |
काबुल भूली नह अजै,
ओ खांडो, ऎ हाथ ||२८||
काबुल की भूमि अभी तक यहाँ के वीरों द्वारा किये गए प्रचंड खड्ग प्रहारों को नहीं भूल सकी है | उन प्रहारों की भयोत्पादक गाथाओं को सुनाकर माताएं बालकों को आज भी डराकर सुलाती है |
संत सती अर सायबा,
जणियां दाता सूर |
जण-जण नाऩ्हां जीव आ,
नथी गमायो नूर ||२९||
इस भूमि ने सदा ही संतो,सतियों और वीर स्वामियों ,दाताओं तथा शूरवीरों को जन्म दिया है | यहाँ की वीर ललनाओं ने तुच्छ प्राणियों (कायर,कपटी और कपूतों) को जन्म देकर अपने रूप यौवन को नष्ट नहीं किया |
जाणै इटली फ़्रांस रा,
जरमन, तुरक , जपान |
रण मतवाला इण धरा,
रण बंको रजथान ||३०||
आज फ़्रांस ,जर्मनी ,तुर्की व जापान के लोग इस तथ्य से भली भांति परिचित हो चुके है कि राजस्थान में युद्ध के लिए आतुर रहने वाले प्रचंड-वीर निवास करते है व राजस्थान विकट युद्ध करने वालों की भूमि है |
रेती धरती विकट भड,
रण-टणका सदियांह |
हिम-गिर यूं साखी भरै,
सन्देसो नदियांह ||३१||
बालुका-मयी इस भूमि पर शताब्दियों से रण-भूमि में बलवान विकट योद्धा उत्पन्न होते है | इस बात की हिमालय भी साक्षी देता है और नदियाँ भी यही सन्देश गान करती है |
किम पडौस कायर बसै,
केम बसै घर आय |
पाणी,रजकण,पवन सह,
वीरा रस बरसाय ||३२||
इस धरती के पडौस में कायर पुरुष कैसे निवास कर सकते है और इस पर आकर तो वे बस ही कैसे सकते है ? क्योंकि यहाँ का पानी,मिटटी और हवा वीर रस की वर्षा करने वाले है अर्थात वीरों को उत्पन्न और पोषित करने वाले है |
लिखियो मिलसी लेख में,
विधना घर नित न्याय |
घर खेती किम नीपजै ?
रण-खेती सरसाय ||३३||
प्रराब्द में जो लिखा होता है ,वही मिलता है | विधाता के घर में सदा न्याय ही होता है यहाँ की भूमि पर खेती कैसे पनप सकती है ? क्योंकि यहाँ की वीर भूमि में तो रण-खेती है |
स्व.आयुवानसिंह शेखावत
राजऋषि ठाकुर श्री मदनसिंह जी,दांता
आइये मोबाईल द्वारा अपने पीसी या लैपटोप पर नेट चलाये
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हठीलो राजस्थान-4
Ratan Singh Shekhawat, Aug 29, 2010
रण छकियो, छकियो नहीं ,
मदिरा पान विशेष |
रण-मद छकियो रीझ सूं,
रण-मतवालो देस ||२२||
रण से तृप्त होने वाला यह देश अत्यधिक मदिरा पान करने पर भी तृप्त नहीं हो सका किन्तु जब उसने उल्लासित होकर रण-रूपी मदिरा का सेवन किया ,तभी जाकर तृप्त हुआ क्योंकि यह सदैव ही रण-रूपी मदिरा से मस्त होने वाला है |
सह देसां सूरा हुआ,
लड़िया जोर हमेस |
सिर कटियाँ लड़णों सखी,
इण धर रीत विसेस ||२३||
हे सखी ! सभी देशों में शूरवीर हुए है ,जो सदैव बड़ी वीरता से लड़े है,किन्तु सिर कटने के उपरान्त भी युद्ध करना तो केवल इस देश की ही विशेष परम्परा रही है |
खाणी रोटी घास री,
पेडा गालां बास |
रगतां लिखियो अमिट नित,
इण धरती इतिहास ||२४||
घास की रोटी खाने वाले, पेडों के नीचे और् कन्दराओं मे निवास करने वाले वीरों ने सदैव ही इस धरती के इतिहास को रक्त से अमिट अक्षरों मे लिखा है |
धर कागज,खग लेखणी,
रगतां स्याही खास |
कमधां लिखियो कोड सूं,
अमिट धरा इतिहास ||२५||
धरती रुपी कागज पर तलवार रुपी लेखनी से रक्त की विषेश स्याही से कमधों (सिर कटने के बाद भी लडने वाले वीरों) ने बडे चाव से इस भूमि का अमिट इतिहास लिखा है |
धोरां घाट्यां ताल रो,
आंटीलो इतिहास |
गांव गांव थरमापली,
घर घर ल्यूनीडास ||२६||
यहां के रेतिले टीलों,यहां की घाटियों और मैदानों का बडा ही गर्व पुरित इतिहास रहा है |यहां का प्रत्येक गांव थरमापल्ली जैसी प्रचण्ड युद्ध स्थली है तथा प्रत्येक घर मे ल्यूनीडास जैसा प्रचण्ड योद्धा जन्म चुका है |
सुलग अगन सुजसां तणी,
सुलगै नित रण-आग |
सदियां सूं देखां सखी ,
सिर अनामी कर खाग ||२७||
यहां के वीरों के ह्रदय मे सदैव सुयश कमाने की अग्नि प्रज्वलित रहती है इसिलिये यहां सदा युद्धाग्नि प्रज्वलित रहती है | हे सखी ! हम तो सदियों से यही देखती आई है कि यहां के वीरों के सिर सदा अनमी (न झुकने वाले)रहे है ,तथा उनके हाथों मे खड्ग शोभित रहा है |
pawan sorry but your without permission i publish your blog for rajput history for world i m publish in my summury . so i m sorry .if you r not permit me then i m delete them.
ReplyDeletei m shailendra singh rajawat from morena near gwalior.
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